आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे अपने शाहे-वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे
तालिबे-शोहरत हैं कैसे भी मिले मिलती रहे आए दिन अख़बार में प्रतिभूति घोटाला रहे एक जन सेवक को दुनिया में अदम क्या चाहिए चार छह चमचे रहें माइक रहे माला रहे
हिंदी समय में अदम गोंडवी की रचनाएँ